
पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ – ‘प्रेमचंद जयंती’ के उपलक्ष्य पर ‘प्रेमचंद साहित्य: भारतीय समाज का दर्पण’ विषय पर कार्यक्रम आयोजित
CHANDIGARH/SANGHOL-TIMES/KEWAL-BHARTI/31JULY,2025 – दिनांक 31 जुलाई, 2025, को हिन्दी साहित्य परिषद, हिंदी-विभाग, पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ द्वारा ‘प्रेमचंद जयंती’ के उपलक्ष्य पर ‘प्रेमचंद साहित्य: भारतीय समाज का दर्पण’ विषय पर कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ के रजिस्ट्रार प्रो. यजवेन्द्र पाल वर्मा, वक्ता के रूप में प्रो. चमन लाल गुप्त (पूर्व अध्यक्ष, हिन्दी विभाग, हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय, शिमला) तथा श्री लल्लन सिंह बघेल (असिस्टेंट प्रोफेसर, दर्शनशास्त्र-विभाग, पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़), हिन्दी-विभाग के अध्यक्ष प्रो. अशोक कुमार, प्रो. बैजनाथ प्रसाद (अध्यक्ष, प्रेमचंद चेयर, पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़), संकाय सदस्य प्रो. गुरमीत सिंह, असिस्टेंट प्रो. विनोद कुमार, प्रो. मोहन लाल जाट (पी. जी. जी. सी. सेक्टर 11), डॉ. पंकज श्रीवास्तव (दर्शनशास्त्र-विभाग, पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़), डॉ. राजेश (अंग्रेजी-विभाग, सी. डी. ओ. ई., पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़), विभाग के शोधार्थी एवं विद्यार्थी उपस्थित रहे। सर्वप्रथम विभागाध्यक्ष ने सभी उपस्थित अतिथियों तथा वक्ताओं का स्वागत करते हुए पुष्पगुच्छ भेंट किए। प्रेमचंद के जीवन एवं लेखन और उनके विचारों पर प्रकाश डालने के लिए स्नातकोत्तर द्वितीय वर्ष से अर्चना, प्रीति, ज्योति यादव, विभाग में फ़िजी से हिंदी सीखने आए स्वनील संदीप कुमार ने अपनी प्रस्तुति दी। तत्पश्चात प्रो. चमन लाल गुप्त ने अपना वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए कहा कि प्रेमचंद एक साहित्यकार ही नहीं कथासाहित्य का एक पैमाना हैं। उनकी छाया में कथासाहित्य के सभी युग चलते हैं। साहित्य को मनोरंजन से ऊपर उठाकर समाज से जोड़ने का कार्य यदि किसी ने किया तो वह प्रेमचंद ही हैं। प्रेमचंद को पढ़ना अतीत को पढ़ना नहीं वर्तमान को पढ़ना है।
रजिस्ट्रार प्रो. यजवेन्द्र पाल वर्मा ने इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में अपने विचार प्रस्तुत करते हुए कहा कि प्रेमचंद समाज को आगे बढ़ाने और उसे जागृत करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। इसका उदाहरण यह है कि जब अंग्रेजों ने उनके लेखन पर प्रतिबंध लगा दिया तो उन्होंने निराश न होकर अपना नाम धनपत राय से बदलकर प्रेमचंद रख लिया। श्री लल्लन सिंह बघेल ने प्रेमचंद के समय और समाज की ओर ध्यान आकृष्ट करते हुए कहा कि प्रेमचंद एक परिवर्तनकारी चिंतक हैं। उन्होंने प्रेमचंद को बहुआयामी, व्यापक दृष्टियों से देखने की आवश्यकता पर बात की।
प्रो. बैजनाथ प्रसाद ने अज्ञेय के हवाले से कहा कि बड़ा साहित्यकार समकालीनता को ढोता नहीं है वह साहित्य को सार्वकालिक बनाता है। प्रेमचंद के पात्र प्रणय जैसे मानवीय मूल्यों के प्रतिनिधि हैं। अध्यक्षीय टिप्पणी करते हुए प्रो. अशोक कुमार ने सभी गणमान्य अतिथियों और वक्ताओं का धन्यवाद करते हुए कहा कि प्रेमचंद यदि आज भी प्रासंगिक हैं तो इसका कारण यह है कि जो समस्याएं तत्कालीन समाज में व्याप्त थीं वे आज भी उसी तरह से खड़ी हैं। प्रेमचंद संवेदना के साथ विमर्श के भी लेखक हैं। उन्हें किसी एक चश्मे से देखना उनके साथ न्याय नहीं होगा। अंत में सभी अतिथियों, वक्ताओं तथा कार्यक्रम में भाग लेने वाले विद्यार्थियों को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया।