
हिमाचल कांग्रेस में हो रहा बंटाधार , हर दिन टूट रही कांग्रेस पार्टी
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लोगों में भाजपा के प्रति पनप रहे गुस्से को कांग्रेस पार्टी कोई रणनीति नहीं बना पा रही
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इसके पीछे सबसे बडा कारण प्रदेश की सियासत में इस बार छह बार मुख्यमंत्री रहे दिवंगत वीरभद्र सिंह की गैर मौजूदगी
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कांग्रेस पार्टी का हर दांव फेल होता जा रहा है
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पार्टी में गुटबाजी के चलते सबको साथ लेकर चलने को कोई तैयार नहीं
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SangholTimes//29अक्तूबर,2022(विजयेन्दर शर्मा)- हिमाचल प्रदेश में सियासी माहौल में यूं तो कर्मचारी हों या फिर आम आदमी मौजूदा भाजपा सरकार से नाराज चल रहा है। कर्मचारी अपनी ओपीएस की पुरानी मांग को लेकर मुखर हैं, तो दूसरी ओर बढती महंगाई और बेरोजगारी ने लोगों को परेशान कर दिया है। इस सबके बावजूद प्रदेश कांग्रेस के कई नेता लगातार कांग्रेस छोड भाजपा का दामन थाम रहे हैं। जिससे कांग्रेस पार्टी को लेकर सियासी गलियारों में खासी चरचा हो रही है। हर दिन कांग्रेस पार्टी में हो रही टूट से खुद कांग्रेसी ही परेशान हैं।
दरअसल, लोगों में भाजपा के प्रति पनप रहे गुस्से को कांग्रेस पार्टी कोई रणनीति नहीं बना पा रही है। ताकि पार्टी के प्रति एक महौल प्रदेश में बन सके। लोग भी अभी तक अनिशचितता के दौर से गुजर रहे हैं। कि क्या कांग्रेस पार्टी का समर्थन करें या न करें। इसके पीछे सबसे बडा कारण प्रदेश की सियासत में इस बार छह बार मुख्यमंत्री रहे दिवंगत वीरभद्र सिंह की गैर मौजूदगी है। उनके निधन के बाद पार्टी में जो शून्य पैदा हुआ, उसकी भरपाई अभी तक कोई नहीं कर पाया है। वीरभद्र सिंह के बिना कांग्रेस पार्टी संकट के दौर से गुजर रही है। पार्टी में कद्दावर नेता के अभाव में संगठन की एकता तार तार हो रही है। और निराशा के भाव में पार्टी नेता भाजपा में जा रहे हैं। अनिशिचतता के इस महौल का लाभ भाजपा को मिलता दिखाई दे रहा है।
कांग्रेस आलाकमान ने कुछ माह पहले पंजाब पैटरन पर हिमाचल में कांग्रेस अध्यक्ष को हटाकर नये अध्यक्ष के तौर पर वीरभद्र सिंह की पत्नी सांसद प्रतिभा सिंह की तैनाती कर उनके साथ चार कार्यकारी अध्यक्ष तैनात किये। लेकिन यह फार्मूला ज्यादा देर तक नहीं चल पाया । विडंबना है कि चार में से दो कार्यकारी अध्यक्ष और एक उपाध्यक्ष भाजपा में चले गये । जाहिर है कि संगठन में बदलाव करने का लाभ पार्टी को नहीं मिला। और पार्टी के लोग कांग्रेस छोड भाजपा में जा रहे हैं।
पार्टी के उपाध्यक्ष विधायक लखविन्दर राणा , कार्यकारी अध्यक्ष पवन काजल जो कि कांगडा से विधायक हैं , ने भी पार्टी को अलविदा कह दिया। पार्टी में मची भगदड के बीच लगातार पार्टी छोड रहे हैं। गंगू राम मुसाफिर भी पार्टी छोड चुके हैं। उन्होंने पच्छाद से निर्दलीय चुनाव लडने का एलान कर दिया है। वहीं मेजर विजय सिंह मनकोटिया और राकेश कालिया ने भी पार्टी छोड दी है। पूर्व सांसद सुरेश चंदेल भी अब भाजपाई हो गये हैं। कई स्थानों पर टिकट न मिलने से कांग्रेसी मुंह फुलाये बैठे हैं।
कांग्रेस पार्टी को प्रदेश में तीन लोग संभाल रहे हैं। जिनमें प्रतिभा सिंह , नेता प्रतिपक्ष और प्रचार समिति अध्यक्ष सुखविन्दर सिंह सुक्खू हैं। लेकिन नामांकन भरने के अंतिम दिन तक तीनों ही नेताओं का आपसी तारतम्य नहीं बन पाया है। कांग्रेस पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के निधन के बाद एक सर्वमान्य नेता को आगे लाने में पूरी तरह नाकाम रही है। जिससे पार्टी में गुटबाजी को हवा मिल रही है। प्रदेश कांग्रेस इन दिनों तीन खेमों में बंटती नजर आ रही है। पार्टी प्रभारी राजीव शुक्ला के पास हिमाचल आने का समय ही नहीं है। कांग्रेस पार्टी का हर दांव फेल होता जा रहा है।
राजनैतिक जानकार मानते हैं कि पार्टी को चुनावों से पहले ही मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करना चाहिये था। ताकि पार्टी में अनिशिचता का महौल खत्म होता। बताया जा रहा है कि प्रतिभा सिंह और मुकेश अगिनहोत्री अपने अपने तरीके से अपने लिये गोटियां बिठाने में लगे हैं, तो दूसरी ओर सुखविंदर सिंह सुक्खू भी अपनी दावेदारी मजबूत करने में लगे हैं। अपनी दावेदारी के सवाल सुक्खू ने बताया कि मुख्यमंत्री बनने की ख्वाहिश रखने में कोई बुराई नहीं है। आलाकमान इस बात से अच्छी तरह वाकिफ है कि पार्टी के सत्ता में लौटने के बाद संभावित नेता कौन हैं या वास्तव में राज्य का नेतृत्व करने के गुण कौन रखते हैं। उन्होंने सवाल किया कि क्या मैं इस पद के लिए योग्य नहीं हूँ? मेरी अपनी हैसियत और योग्यता है। मैंने जमीनी स्तर से पार्टी के सर्वोच्च पद तक काम किया है और राज्य में कांग्रेस को मजबूत किया है। मेरी पहली प्राथमिकता कांग्रेस को सत्ता में लाना है इसके लिए पार्टी को एक जुट होना जरुरी हैं।
कांग्रेस नेता ही मानते हैं कि हिमाचल प्रदेश में पार्टी इन दिनों संकट के दौर से गुजर रही है। आज पार्टी को पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह जैसे कद्दावर नेता की जरूरत है। जो सबको साथ लेकर चल सके। व चुनावों में जीत दिला सके। वीरभद्र सिंह हमेशा ही पार्टी के लिये संकटमोचक साबित हुये। उन्होंने कई चुनाव अकेले ही जीतवा दिये। लेकिन आज हालात अलग हैं। माना जा रहा है कि हालात न सुधरे तो भाजपा इस मौके का पूरा फायदा उठाने का प्रयास करेगी।