Chandigarh – इको-सेंसिटिव जोन (ईएसजेड) मामले पर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में अदालत ने नई अधिसूचना तैयार करने के लिए तीन महीने का समय दिया

न्यू- चण्डीगढ/संघोल-टाइम्स/011.12.24/जे के बत्ता –
इको-सेंसिटिव जोन (ईएसजेड) मामले पर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में कुछ घटनाक्रम सामने आए हैं। पंजाब सरकार ने सचिव वन श्री प्रियांक भारती के माध्यम से एक हलफनामा प्रस्तुत किया जिसमें कहा गया है कि जनता की चिंताओं को दूर करने के लिए तीन सदस्यीय समिति का गठन किया गया है। इसमें 1. श्री लाल चंद कटारूचक्क, वन एवं वन्यजीव संरक्षण विभाग के प्रभारी मंत्री, पंजाब। 2. डॉ. रवजोत सिंह, स्थानीय सरकार विभाग के प्रभारी मंत्री, पंजाब। 3. श्री हरदीप सिंह मुंडियां, आवास एवं शहरी विकास विभाग के प्रभारी मंत्री, पंजाब शामिल हैं। 4 दिसंबर, 2024 को आयोजित एक सार्वजनिक सुनवाई में, समिति को 81 अभ्यावेदन प्राप्त हुए। चिंताओं की मात्रा को देखते हुए, सरकार ने मामले को हल करने के लिए और समय मांगा। अदालत ने जनता की चिंताओं को दूर करने और तदनुसार एक नई अधिसूचना तैयार करने के लिए तीन महीने का समय दिया है। मुख्य चिंताएँ: मुख्य मुद्दा चंडीगढ़ प्रशासन द्वारा सुखना वन्यजीव अभ्यारण्य की घोषणा है, जिसके कारण भूमि पर अधिकार क्षेत्र और अधिकार के बारे में चिंताएँ पैदा हुई हैं। पंजाब सरकार को चंडीगढ़ द्वारा वन्यजीव अभ्यारण्य की अधिसूचना को चुनौती देनी चाहिए। यदि पंजाब सरकार कानूनी मुद्दों को संबोधित किए बिना चंडीगढ़ की अधिसूचना के आधार पर इको-सेंसिटिव ज़ोन (ईएसजेड) घोषित करती है, तो इसका मतलब अनिवार्य रूप से चंडीगढ़ द्वारा 1998 में किए गए उल्लंघन को स्वीकार करना होगा। ऐसा इसलिए है क्योंकि चंडीगढ़ द्वारा 1998 में सुखना वन्यजीव अभ्यारण्य की घोषणा अवैध मानी जाती है, क्योंकि यह संबंधित भूमि पर अधिकार क्षेत्र के बिना किया गया था। अपने मामले को मजबूत करने के लिए, पंजाब सरकार को इस बात पर जोर देना चाहिए कि संबंधित भूमि पंजाब की है, और पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 के अनुसार “भूमि संरक्षण” के लिए भारत संघ को निहित की गई थी। वास्तव में जमाबंदी के अनुसार राजस्व रिकॉर्ड में भूमि पंजाब की है। वन्यजीव अभ्यारण्य या पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र की कोई भी घोषणा विधि सम्मत प्रक्रिया के अनुसार की जानी चाहिए। इसमें उनकी भूमि पर वन और वन्यजीवों के लिए घोषणा प्रक्रिया आरंभ करना शामिल है। जिन लोगों को अभी भी अपनी भूमि पर मकान बनाना है, वे जानना चाहते हैं कि ईएसजेड घोषित होने के बाद उन्हें 2006 में घोषित अधिसूचित क्षेत्र समिति में मकान बनाने की अनुमति दी जाएगी या नहीं। गांवों पर प्रभाव: 100 मीटर से अधिक का बफर जोन कांसल, नाडा और करोरन के घनी आबादी वाले और आवासीय क्षेत्रों के भविष्य के विकास को तबाह और प्रभावित करेगा। एनएसी-नयागांव का बहिष्कार: माननीय उच्च न्यायालय के निर्देशानुसार 2006 में गठित और घोषित अधिसूचित क्षेत्र समिति (एनएसी)-नयागांव (नगरपालिका सीमा) की विशिष्ट स्थिति को देखते हुए, ईएसजेड से बहिष्कार का अनुरोध करना उचित है। इस बहिष्कार से प्लॉट धारकों को अपनी आवासीय आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए वास्तविक आवासीय उपयोग हेतु निर्माण कार्य करने में सक्षम बनाया जाएगा। इको-सेंसिटिव जोन (ईएसजेड) मामले पर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में अदालत ने नई अधिसूचना तैयार करने के लिए तीन महीने का समय दिया गयाहै अब पंजाब सरकार द्वारा गठित तीन सदस्यो की कमेटी को कांसल ,नयागांव व नाडा के वासीयो के हित मे र्निणय लेना चाहिये ।
भाजपा के विनित जोशी ने कहा कि विनित जोशी :- ने यह भी बताया कि सबसे पहले चण्डीगढ प्रशासन पंजाब की जमीन वापिस करें जो एसने कंसजवेशन के लिये ली थी अब वह उस पर कब्जा करके वन विभाग बना कर बैठा है । 1998 में यूटी चंडीगढ़ ने एकतरफा और अवैध रूप से पंजाब की 2296 एकड़ भूमि को सुखना वन्यजीव अभ्यारण्य घोषित कर दिया, जबकि उक्त भूमि का स्वामित्व यूटी चंडीगढ़ के पास नहीं है, जिसे पुनर्गठन अधिनियम, 1966 के अनुसार चंडीगढ़ को कभी हस्तांतरित नहीं किया गया। चंडीगढ़ द्वारा सुखना वन्यजीव अभ्यारण्य घोषित करने से कंसल गांव यूटी चंडीगढ़ से घिरा हुआ है, सुखना वाइल्ड लाइफ सैंक्चुअरी के तीन किलोमीटर के दायरे तक ईको सेंसिटिव जोन लागू होने का सीधा असर इसके समीप के रिहायशी क्षेत्र नयागांव, कांसल, करोरां, नाडा और न्यू चंडीगढ़ का हिस्सा आएगा। ऐसे में इन क्षेत्रों में कई रिहायशी प्रोजेक्टों पर तलवार लटक सकती है, जिसमें मध्यमवर्गीय लोगों के जीवन भर की कमाई लगी हुई है। चंडीगढ़ से लगते घनी आबादी वाले क्षेत्र नयागांव के साथ कांसल, करोरां, नाडा और न्यू चंडीगढ़ का क्षेत्र ईको सेंसिटिव जोन में आने से यहां हाई राइज बिल्डिंग के निर्माण पर पूरी तरह रोक लग जाएगी। यहां तक की जो मकान एग्रीकल्चर लैंड या सुखना के समीप तीन किलोमीटर के दायरे के अंदर बने हैं या रिहायशी प्रोजेक्ट शुरू हुए हैं, उन सभी पर रोक लग जााएगी। इससे एरिया के एक से डेढ़ लाख लोग प्रभावित होंगे। यह भी संभावना है कि ईको सेंसिटिव जोन के नियमों के तहत रिहायशी और व्यवसायिक इमारतों को तोड़ा भी जाए। इको-सेंसिटिव जोन (ईएसजेड) मामले पर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में अदालत ने नई अधिसूचना तैयार करने के लिए तीन महीने का समय दिया गया है अब पंजाब सरकार द्वारा गठित तीन मंत्रीयो की कमेटी को कांसल ,नयागांव व नाडा के वासीयो के हित मे र्निणय लेना चाहिये वरना हमारा सरकार के विरूध्द संर्घष जारी रहेगा ।
हरजोत एस. ओबेरॉय, अध्यक्ष, कांसल रेजिडेंट्स प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स एंड वेलफेयर एसोसिएशन :- ने कहा कि सवाल यह उठता है कि यूटी चंडीगढ़ वन सचिव ने वन्यजीव अभ्यारण्य कैसे घोषित कर दिया, जबकि यूटी चंडीगढ़ का उक्त भूमि पर कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है। 1998 में यूटी चंडीगढ़ ने एकतरफा और अवैध रूप से पंजाब की 2296 एकड़ भूमि को सुखना वन्यजीव अभ्यारण्य घोषित कर दिया, जबकि उक्त भूमि का स्वामित्व यूटी चंडीगढ़ के पास नहीं है, जिसे पुनर्गठन अधिनियम, 1966 के अनुसार चंडीगढ़ को कभी हस्तांतरित नहीं किया गया। चंडीगढ़ द्वारा सुखना वन्यजीव अभ्यारण्य घोषित करने से कंसल गांव यूटी चंडीगढ़ से घिरा हुआ है, जिसकी पंजाब से कोई सीधी पहुंच नहीं है। कंसल पंजाब के लिए एक द्वीप कैसे हो सकता है? पंजाब सरकार को चंडीगढ़ द्वारा घोषित सुखना वन्यजीव अभ्यारण्य अधिसूचना का कड़ा विरोध करना चाहिए; यह अवैध है। भूमि पंजाब सरकार की है; मृदा संरक्षण से परे कोई भी अधिकार जिसके लिए यह भूमि भारत संघ को दी गई थी और बाकी पंजाब के पास है। पंजाब सरकार ने पहले ही पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में सीडब्ल्यूपी 18253/2009 में समीक्षा आवेदन दायर कर दिया है तथा 1 किलोमीटर के आदेश का विरोध कर रही है। चंडीगढ़ यूटी ने पंजाब के हिस्से के प्रादेशिक अधिकार क्षेत्र को हड़प लिया है, जो अब सुखना वन्यजीव अभ्यारण्य है, तथा कांसल को पंजाब के साथ क्षेत्रीय सघनता एवं निकटता से पूरी तरह काट दिया है। यह सभी तर्क एवं संवैधानिक वैधता से परे है, क्योंकि तब कांसल का पंजाब के साथ कोई संबंध नहीं रह जाएगा। यह ऐसा है जैसे चीन पूर्वी लद्दाख में चीन के हिस्से के रूप में तथा चंडीगढ़ पूर्वी कांसल पर अपना दावा ठोंक रहा है, जबकि इस भूमि का कलेक्टरेट पंजाब के पास है। ईएसजेड से संबंधित मामला सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है, तथा पंजाब सरकार को इस मुद्दे को सर्वोच्च न्यायालय में उठाना चाहिए तथा इसका दृढ़तापूर्वक विरोध करना चाहिए। । इको-सेंसिटिव जोन (ईएसजेड) मामले पर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में अदालत ने नई अधिसूचना तैयार करने के लिए तीन महीने का समय दिया गयाहै अब पंजाब सरकार द्वारा गठित तीन सदस्यो की कमेटी को कांसल ,नयागांव व नाडा के वासीयो के हित मे र्निणय लेना चाहिये ।
एडवोकेट रवनीत सिंह बैंस कांसल निवासी :-
एडवोकेट रवनीत सिंह बैंस ने पंजाब सरकार से आग्रह किया कि वे पहले अपनी जमीन पर वन्यजीव अभ्यारण्य घोषित करें और उसके बाद ही कोई इको सेंसिटिव जोन घोषित करें। सुखना वन्यजीव अभ्यारण्य के आसपास जो भी ईएसजेड घोषित किया गया है, उसे माननीय उच्च न्यायालय के निर्देशानुसार 2006 में गठित व घोषित नगर पंचायत अधिसूचित क्षेत्र समिति ने बफर जोन से बाहर रखा है, तथा प्लॉट धारकों को आवासीय जरूरतों को पूरा करने के लिए अपनी जमीन पर वास्तविक आवासीय उपयोग के लिए निर्माण करने की अनुमति दी जाए तथा भवन की छत की ऊंचाई 10 मीटर तक सीमित रखी जाए। अन्य निवासी, जिन्हें अभी भी अपनी जमीन पर मकान बनाने हैं, वे जानना चाहते हैं कि क्या उन्हें 2006 में घोषित अधिसूचित क्षेत्र समिति में मकान बनाने की अनुमति दी जाएगी। चूंकि वे न्यायालय के आदेश के कारण मकान नहीं बना रहे हैं।
सुधीर सूद समाज सेवक कांसल निवासी :-
का कहना है कि अब 18 साल पहले नयागांव-कांसल की पंचायत को 2006 में पहले नगर पंचायत बनाया फिर आबादी के अनुसार इसे नगर काउंसिल का दर्जा दिया गया ।अब इस क्षेत्र में विकास कार्य भी सरकार द्वारा करोडो रूपये की लागत से किये जा रहे है । जिसमें 21 वाडर इसमें गलियां पक्की करना,स्ट्रिट लाईटे लगाना,पानी के नये टयुवैल लगवाना तथा सिवरेज टिटमेंट प्लांट का भी करोडो रूपये से लगवाना शमिल है । उसी तरह अब लोगो ने अपनी जिंदगी की सारी कमाई से अपने आशियाने बनाये है ।अब पंजाब के वन विभाग द्वारा ईको सेंसेटिव जोन का दायरा तीन किलो मीटर तक बढाने जा रहा है ।जो कि बिलकुल गल्त है ।अगर वन विभाग को वन्यजीव अभ्यारण्य क्षेत्र बनाना है तो अपने वन के क्षेत्र के अंदर पिछे कि ओर ले जाये आगे बढाने की क्या आवश्कता है । इको-सेंसिटिव जोन (ईएसजेड) मामले पर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में अदालत ने नई अधिसूचना तैयार करने के लिए तीन महीने का समय दिया गयाहै अब पंजाब सरकार द्वारा गठित तीन सदस्यो की कमेटी को कांसल ,नयागांव व नाडा के वासीयो के हित मे र्निणय लेना चाहिये । पंजाब सरकार को इको-सेंसिटिव जोन (ईएसजेड) हद नही बझानी चाहिये । लोगो को परेशन ना किया जाये ।
