KARWA SACH
कोट कचहरी की प्रक्रिया अपने आप में एक सजा हैं
7 – 7 साल मामूली से मामूली केस निरन्तर चलते रहते हैं,
इसी वजह से राजनैतिक लोग इसको टूल की तरह इस्तेमाल करते है
Sanghol Times/Sanjay Sagar/19.03.2023/Agra – एक बड़े लोअर कोर्ट परिसर में औसतन सौ कमरे होते है। यानी लगभग सौ अदालते यानी सौ जज साहब और कम से कम 1हजार वकील और सहायक। औसतन हर कमरे के बाहर 130 से 135 लोगो की एक लिस्ट लगी होती है। जिनके मुकदमे इस कमरे में सुनवाई के लिए आए है। 130 से 135 केस यानी कम से कम 1हजार लोग !
उस कोर्ट रूम में केस के सम्बन्ध में आएंगे। कोर्ट का समय 10 बजे का होता है।
कोर्ट की बाहर लोग इंतजार करते रहते है। कोई वादी पूछ ले जज साहब कहां है ? तो रजिस्ट्रार टेडी आंखों से जवाब दे सकता है, अगर जवाब देने का मूड हो तो कि वो चैंबर में किसी केस को स्टडी कर रहे है। फिर जज साहब कोर्ट की कारवाही शुरू करते है। आवाज लगनी शुरू होती है। पहले के 40 -50 लोग तो अगली पेशी की तारीख लेने के लिए ही आते है और जज साहब उन्हे तारीख देने के लिए। फिर दोनो वकीलों के द्वारा अगले 50 – 60 लोगो के कागज चेक किए जाते है। जो कि अमूमन कोई ना कोई कागज अधूरा रह ही जाता है। सो उनको भी अगली तारीख दे दी जाती है।
फिर अगले 50 -60 लोगो के केसेस की कुछ वरिष्ठ अधिवक्ताओं द्वारा बहस की जाती है। जो किसी निष्कर्ष तक नही पहुंच पाती, सो उनको भी अगली तारीख दी जाती है। 3 से 4 बजे तक आते आते बामुश्किल दो या तीन केसेस में कुछ लोगो को फैसला सुनाया जाता है। कभी कभी महीने दो महीने में तीन या चार बार जज साहिबान तशरीफ ही नही लाते। कभी कभी वादी और अभियुक्तगण लोअर कोर्ट में कोर्ट चेंज हो जाने के कारण इधर उधर भटकते रहते हैं। क्योंकि कई कमरों पर तो कुछ लिखना ही नही होता। कई बार बाहर कोर्ट रूम में लोगो को डेढ़ दो घंटे बिठाने के बाद घोषणा की जाती है कि आज जज साहब नही आयेंगे। तब रजिस्ट्रार साहब तारीखे बांट रहे होते है। चार या छह महीने बाद जज साहब का तबादला होना भी स्वाभाविक प्रक्रिया माने।
फिर अगले जज साहब नई सुनवाई नई प्रक्रिया, कागज अगर सही है तो, और खुदा न खास्ता अगर आप लेट हो गए कोर्ट रूम में आने के कही ट्रेफिक में फंस गए और जज साहब का मूड खराब हो तो पांच सौ से लेकर दो हजार रुपए तक का चालान भी काटा जा सकता है। जो उसी समय आपको कोर्ट के अंदर किसी एक रूम में आपको देकर उसकी रसीद जज साहब के आगे पेश करनी होती है वरना सीधे जेल। कभी कभी एक दिन में एक एक वकील के पास बीस बीस मुकदमे होते है। सबकी पेशी एक साथ नहीं हो सकती सो कही कही वो अपने सहायकों को भेजकर अगली तारीख लेने की कोशिश करते है। या सुनवाई दो घंटे बाद की हो इसकी प्रार्थना जज साहब से कर सकते है।
“याचिका कर्ता और आरोपी दोनो वकीलो के मोहताज है। बिना वकील के जज साहब आपको सुनेगे ही नही। आपको टरका देगे, ये कहकर कि जाओ अपना वकील लेकर आओ। कभी कभी इस तरह भी केस आगे बढ़ता है। तीन चार महीने कुछ नही होता एक इंच भी केस आगे नही बढ़ता। लोअर कोर्ट में 7 – 7 साल मामूली से मामूली केस चलते रहते है। ये प्रक्रिया अपने आप में एक सजा है। न्याय मिलेग नही मिलेगा वो बाद की बात है, पर जिस दिन फैसला आता है न्याय से ज्यादा लोगो को इस बात की खुशी होती है कि अब दुबारा कोर्ट कचहरी नही आना पड़ेगा। वो जो टॉर्चर जैसा तजुर्बा है, वो दुबारा झेलना नही पड़ेगा। इसलिए समझदार लोग बाहर ही बाहर जल्द से जल्द आपसी सहमति से फैसला कराने के इच्छुक होते है।”
और जो लोग फिल्मे देखकर अदालतों में जाते है कि कुछ समय बाद फैसले आ जायेगे जैसे फिल्मों में आ जाते है।
वो यूं ही धक्के खाने के बाद ही समझते है कि असल अदालत होती क्या है ?
भारत का कानूनी निजाम एक जंगल की तरह है, यहां सिर्फ और सिर्फ भटकन है। इसी वजह से लोग अदालतों में जाने से गुरेज करते है। इसी वजह से राजनैतिक लोग इसको टूल की तरह इस्तेमाल करते है ताकि अपने सियासी और दूसरे मकसदों को हासिल किए जा सके। गलत से गलत कामो के करने वाला बुरा अदालती कारवाही में सटीक बैठता है।