सिख धर्म में शहीदी सप्ताह 21-28 दिसंबर तक – आओ हम सब मिलकर इस सप्ताह को पूरी श्रद्धा और भक्ति से मनायें
Sanghol Times/K Bharti/23.12.2023 – सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंहजी के परिवार की शहादत को आज भी इतिहास की सबसे बड़ी शहादत माना जाता है। धर्म व आम जन की रक्षा के लिए दी गई इस शहादत जैसा दूसरा ही कोई उदाहरण सुनने या पढ़ने को मिलता हो।
सिख नानकशाही कैलेंडर के अनुसार, 21 दिसंबर से लेकर 27 दिसंबर तक, शहीदी सप्ताह मनाते हैं। इन दिनों गुरुद्वारों से लेकर घरों तक में कीर्तन-पाठ बड़े स्तर पर किया जाता है। बच्चों को गुरु साहिब के परिवार की शहादत के बारे में बताया जाता है। साथ ही कई श्रद्धावान सिख इस पूरे हफ्ते जमीन पर सोते हैं और माता गुजरी व साहिबजादों की शहादत को नमन करते हैं। दरअसल, इसी कड़कड़ाती ठंड के बीच माता गुजरी और दोनों छोटे साहिबजादों को सरहंद के ठंड बुर्ज में खुले आसमान के नीचे कैद किया गया था। इतिहास में इस पूरे हफ्ते क्या हुआ था, बता रहे हैं।
🚩🔷20 दिसंबर । मुगलों ने व कुछ पहाड़ी राजाओं ने मिलकर आनंदपुर साहिब में आनंदगढ़ के किले पर हमला कर दिया था और किले को चारों तरफ से घेर लिया था| मुगलों और पहाड़ी राजाओं ने गेरा कई दिन तक डाले रखा था| जब मुगलों और पहाड़ी राजाओं को कोई कामयाबी न मिली तो उन्होंने चाल चलते हुए आश्वासन दिया कि अगर गुरु साहब अपने सिखों समेत यह किला छोड़ दें तो उन्हें कुछ नहीं कहा जाएगा| क्योंकि सिख बहुत थोड़ी तादाद में थे| गुरु गोबिंद सिंह जी मुगलों से लड़ना चाहते थे, लेकिन अन्य सिखों ने उन्हें वहां से चलने के लिए कहा। इसके बाद गुरु गोबिंद सिंह के परिवार सहित व अन्य सिखों ने आनंदपुर साहिब के किले को छोड़ दिया और वहां से निकल पड़े। पर जैसे ही रात को गुरु साहब व थोड़े से सिखों ने अपने परिवार समेत किला छोड़ा तभी मुगलों व पहाड़ी राजाओं ने वादा खिलाफी करते हुए गुरु साहब के परिवार व गुरु के सिखों पर हमला कर दिया था|
🚩🔷21 दिसंबर : जब सभी लोग सरसा नदी को पार कर रहे थे तो पानी का बहाव इतना तेज हो गया कि पूरा परिवार बिछड़ गया। बिछड़ने के बाद गुरु गोबिंद सिंह व दो बड़े साहिबजादे बाबा अजित सिंह व बाबा जुझार सिंह चमकौर पहुंच गए। वहीं, माता गुजरी, दोनों छोटे साहिबजादे बाबा जोरावर सिंह व बाबा फतेह सिंह और गुरु साहिब का पहाड़ी रसोईया गंगू गुरु साहिब व अन्य सिखों से अलग हो गए। इसके बाद गंगू रसोईया पहाड़ी, इन सभी को अपने घर ले गया लेकिन उस के मन में लालच आ गया था । उसने सरहंद के नवाब वजीर खान को जानकारी दे दी, जिसके बाद वजीर खान के सिपाहियों ने माता गुजरी और दोनों छोटे साहिबजादों को कैद कर लिया।
🚩🔷22 दिसंबर : इस दिन चमकौर की लड़ाई हुई जिसमें सिख और मुगलों की सेना आमने-सामने थी। मुगल बड़ी संख्या में थे लेकिन सिख कुछ ही थे। गुरु गोबिंद सिंह जी ने सिखों में हौंसला भरा और युद्ध में डटकर सामना करने को कहा। इसके बाद सिखों ने मुगलों से लोहा लिया और उन्हें नाको चने चबवाए।
🚩🔷23 दिसंबर : यह युद्ध अगले दिन भी चलता रहा। युद्ध में सिखों को शहीद होता देखा दोनों बड़े साहिबजादों बाबा अजित सिंह व बाबा जुझार सिंह ने एक-एक कर युद्ध में जाने की अनुमति गुरु साहिब से मांगी। गुरु साहिब ने उन्हें अनुमति दी और उन्होंने एक के बाद एक मुगल को मौत के घाट उतारना शुरू किया। इसके बाद वह दोनों भी शहीद हो गए।
🚩🔷24 दिसंबर : गुरु गोबिंद सिंह जी भी इस युद्ध में उतरना चाहते थे । लेकिन अन्य सिखों ने अपने अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए गुरु साहिब को युद्ध में उतरने से रोक दिया क्यूकि चह चाहते थे गुरू साहिब की सलामती ताकि गुरु साहिब सिखों की अगुआई कर सके और उन्हें वहां से जाने को कहा। मजबूरन गुरु साहिब को वहां से निकलना पड़ा। इसके बाद वह सभी सिख मैदान में लड़ते हुए शहीद हो गए।
🚩🔷25 दिसंबर : यहां से निकलने के बाद गुरु गोबिंद सिंह जी एक गांव में पहुंचे जहां उन्हें बीबी हरशरन कौर मिलीं जो गुरु साहिब को आदर्श मानती थीं। उन्हें जब युद्ध में शहीद हुए सिखों व साहिबजादों की जानकारी मिली तो वह चुपके से चमकौर पहुंचीं और शहीदों का अंतिम संस्कार करना शुरू किया जबकि मुगल यह नहीं चाहते थे। वह चाहते थे कि चील-गिद्द इन्हें खाएं। जैसे ही मुगल सैनिकों ने बीबी हरशरन कौर को देखा, उन्हें भी आग के हवाले कर दिया और वह भी शहीद हो गईं।
🚩🔷26 दिसंबर : सरहंद के नवाब वजीर खान ने माता गुजरी और दोनों छोटे साहिबजादों बाबा जोरावर सिंह व बाबा फतेह सिंह को ठंडा बुर्ज में खुले आसमान के नीचे कैद कर दिया। वजीर खान ने दोनों छोटे साहिबजादों को अपनी कचहरी में बुलाया और डरा-धमकाकर उन्हें धर्म परिवर्तन करने को कहा लेकिन दोनों साहिबजादों ने ‘जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल’ के जयकारे लगाते हुए धर्म परिवर्तन करने से मना कर दिया। वजीर खान ने फिर धमकी देते हुए कहा कि कल तक या तो धर्म परिवर्तन करो या मरने के लिए तैयार रहो।
🚩🔷27 दिसंबर : ठंडे बुर्ज में कैद माता गुजरी ने दोनों साहिबजादों को बेहद प्यार से तैयार करके दोबारा से वजीर खान की कचहरी में भेजा। यहां फिर वजीर खान ने उन्हें धर्म परिवर्तन करने को कहा लेकिन छोटे साहिबजादों ने मना कर दिया और फिर से जयकारे लगाने लगे। यह सुन वजीर खान तिलमिला उठा और दोनों साहिबजादों को जिंदा दीवार में चिनवाने का हुक्म दे दिया और साहिबजादों को शहीद कर दिया। यह खबर जैसे ही दादी माता गुजरी के पास पहुंची, उन्होंने भी अपने प्राण त्याग दिए ।