श्री हजूर साहिब नांदेड़ महाराष्ट्र से आई यात्रा के सैकड़ों मराठी श्रद्धालुओं ने ऐतिहासिक गुरुद्वारा गोइंदवाल साहिब में मात्था टेका
बाबा नामदेव अंतर्राष्ट्रीय फाउंडेशन के प्रधान गरचा द्वारा यात्रा के प्रबंधकों को किया गया सम्मानित
श्री गोइंदवाल साहिब/संघोल-टाइम्स/ब्यूरो/21 नवंबर,2024( ) – भक्ति लहर के माणिक मोती बाबा नामदेव जी की जन्मस्थली नरसी नामदेव (जिला सतारा) महाराष्ट्र से शुरू होकर श्री हजूर साहिब नांदेड़ से होते हुए भगत नामदेव यात्रा में शामिल सैंकड़ों की गिनती में आये मराठी श्रदालुओं ने आज ऐतिहासिक गुरुद्वारा श्री गोइंदवाल साहिब में माथा टेका। संत बाबा नरिंदर सिंह जी, संत बाबा बलविंदर सिंह जी के आशीर्वाद से पंजाब आई यात्रा के मुख्य प्रबंधक मराठी लेखक और नानक साईं फाउंडेशन महाराष्ट्र के चैयरमेन पंडरीनाथ बोकारे और बाबा नामदेव अंतर्राष्ट्रीय फाउंडेशन के अध्यक्ष सुखविंदरपाल सिंह गरचा का शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की तरफ से मैनेजर सरदार गुरा सिंह मान, मीत मैनेजर सरबजीत सिंह मुंडापिंड, शिरोमणि अकाली दल के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष कुलदीप सिंह औलख और साथियों ने गर्मजोशी से स्वागत किया और हैड ग्रंथी गयानी गुरमुख सिंह जी ने श्रदालुओं को इस ऐतिहासिक गुरुद्वारा साहिब के बारे में विस्तार से जानकारी दी। इस अवसर पर बाबा नामदेव अंतर्राष्ट्रीय फाउंडेशन के अध्यक्ष सुखविंदरपाल सिंह गरचा ने श्रद्धालुओं को महान भगत नामदेव जी के जीवन के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि भगत नामदेव जी का जन्म 1270 ईस्वी में हुआ और उन्हें भक्ति लहर के अग्रणी संतों में से एक माना जाता है। आपके पिता का नाम दामाशेठ और माता का नाम गोनाबाई था। आपका परिवार भगवान विट्ठल जी का भक्त था। नामदेव जी का विवाह गोबिंदसेती की बेटी राजबाई से हुआ, जिनसे चार पुत्र और एक पुत्री का जन्म हुआ, जिनमें पुत्रों के नाम नारायण, महादेव, गोबिंद और विट्ठल थे तथा पुत्री का नाम लिम्बा बाई था। भगत नामदेव जी छिम्बा जाति से थे, जो उस समय के वर्ण वितरण के अनुसार निम्न जाति मानी जाती थी। भगत जी ने कपड़े रंगने और सिलने का पितृसत्तात्मक कार्य पूरी मेहनत और ईमानदारी से किया। भगत नामदेव जी बचपन से ही भक्ति के रंग में रंगे हुए थे। ऐसा माना जाता है कि उनका परिवार नरसी बहमनी से पंढरपुर चला गया और यहीं भगत जी ने लंबा समय बिताया और गुरु विशेवा खेचर से दीक्षा प्राप्त की। भगत नामदेव जी भारत के प्रसिद्ध मंदिरों, प्रयागराज, काशी, मथुरा, अयोध्या, बृदावन, जगन्नाथ, द्वारकापुरी, गया और कई अन्य तीर्थ स्थानों का गए और भक्ति लहर को प्रचंड किया। श्री गुरु ग्रंथ साहिब में भगत जी की बानी के 10 रागों में 61 शब्द दर्ज हैं। उनके शब्द हस्तनिर्मित हैं पंजीकृत हैं उनकी शिक्षा हमेशा मेहनत से काम करने और मन प्रभु भक्ति में लगाने की रही। भगत नामदेव जी ने हर जगह अपनी भक्ति की छाप छोड़ते हुए अपना पूरा जीवन भेदभाव खत्म करने की शिक्षा देने में बिताया। 10वीं भगत नामदेव जी यात्रा के मुख्य आयोजक, मराठी लेखक और नानक साईं फाउंडेशन महाराष्ट्र के अध्यक्ष श्री पंडरीनाथ बोकरे ने कहा कि हमारा मुख्य उद्देश्य महाराष्ट्र की संगतों को पंजाब के ऐतिहासिक तीर्थों के दर्शन कराना और मराठी और पंजाबी समुदाय को मजबूत करना है। इस अवसर पर श्रीमती प्रफुल्ल बोकरे, राकेश कुमार, दर्शन सिंह गरचा, हरप्रीत सिंह सोहल, मलविंदर सिंह संधू, श्रीजेश कुमार बोकारे, पंडित विश्वामित्र, कुलविंदर सिंह बब्बी, लवदीप सिंह, हरचरण सिंह वालिया, जसवन्त सिंह जग्गी, श्रीमती वनिता, अमरजीत कौर ग्रेवाल, रवचरण सिंह, परमिंदर सिंह गिल, तरूण कुमार वर्मा, केवल बंसल, गुरविंदर सिंह, लखविन्दर सिंह आदि विशेष रूप से उपस्थित थे।
