SangholTimes/धर्मशाला/23जून,2022(विजयेन्दर शर्मा) – ज्वालामुखी मंदिर में प्रशासनिक लापरवाही का मामला सामने आने के बाद अधिकारी अब इस पर लीपापोती करने में लगे हैं। लेकिन मामले को लेकर अधिकारियों की कार्यशैली पर सवाल उठने लगे हैं। कि आखिर कैसे एक ऐसे अधिकारी को मंदिर अधिकारी का दायित्व दे दिया गया। जिसका वह पात्र ही नहीं था।
दरअसल, सारा मामला उस समय सामने आया जब हाल ही में जेबीडी ग्रुप की ओर से ज्वालामुखी मंदिर का इस साल छापा गया । लेकिन हैरानी की बात है कि कैलेंडर में कांगड़ा के जिलाधीश को चौथे नंबर पर धकेल दिया गया है। व पहले नंबर पर उस अधिकारी का नाम आ गया है,जिसका कोई संवैधानिक औचित्य ही समझ से परे है।
प्रोटोकॉल व कानूनी प्रावधानों के तहत जिलाधीश कांगड़ा मंदिर आयुक्त है। लिहाजा वहीं मंदिर मामलों में सर्वेसर्वा है। लेकिन इस कैलेंडर में वो अधिकारी जो कि वित्त एवं लेखा सेवा से हैं पहले नंबर पर हैं । उसके बाद मंदिर अधिकारी और एसडीएम का नाम है। अंत में जिलाधीश हैं। यही नहीं विवादों में घिरे लेखा अधिकारी इस दौरान मंदिर अधिकारी भी बन गये। व बाकायदा महीना भर उन्होंने कई निर्णय भी लिये।
हालांकि , हिन्दू सार्वजनिक संस्थान एवं पूर्व विन्यास अधिनियम और 2018 के संशोधन की धारा तीन , जिसकी अधिसूचना 9 अप्रैल 2018 को निकली है , में स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि मंदिर अधिकारी तहसीलदार ही होगा। अधिसूचना में स्पष्ट है कि सरकार, राजस्व विभाग के तहसीलदारों में से या किसी समतुल्य अधिकारी को प्रत्येक मंदिर के लिए उसके कार्य की देखरेख करने हेतु मन्दिर अधिकारी के रूप में नियुक्त कर सकेगी
लेकिन ज्वालामुखी में नियमों के विपरीत पिछले दिनों एक लेखा अधिकारी ही मजिस्ट्रेट की शक्तियां वाली पोस्ट यानी मंदिर अधिकारी बना दिया गया।
आखिर किस कानून के तहत इसे मंदिर अधिकारी बनाया गया। इसकी जांच को लेकर आवाज उठ रही है। हैरानी की बात है कि इस मामले पर न तो कांगड़ा के जिलाधीश ने कोई आपत्ति की । न ही ज्वालामुखी के एसडीएम ने विरोध किया।
हैरानी की बात है कि , ज्वालामुखी मंदिर में मंदिर अधिकारी यानी तहसीलदार एक ऐसा आदमी बन गया जिसका पात्र ही नहीं था। नियमों के विपरीत एक महीने तक यह नियुक्ति हुई लेकिन सब अनजान रहे । सारे मामले की जांच में पता चला कि ज्वालामुखी सदर के तहसीलदार जिनके पास मंदिर अधिकारी का भी दायित्व था। 4 मार्च को छुट्टी पर चले जाते हैं और उनकी वापसी 22 मार्च को होती है। तत्कालीन तहसीलदार दीनानाथ यादव 24 मार्च को ज्वालामुखी से रिलीव हो जाते हैं यानी उनका तबादला हो जाता है। लेकिन पीठासीन अधिकारी के तौर पर मंदिर अधिकारी के दफ्तर में लगाया बोर्ड बताता है कि 5 मार्च को ही इस अधिकारी को मंदिर अधिकारी के तौर पर दायित्व मिल गया जो कि कानूनी तौर पर बिल्कुल गलत है। क्योंकि मंदिर अधिकारी तहसीलदार जिसके पास मैजिस्ट्रेट की शक्तियां हैं ही तैनात हो सकता था।
सारा मामला उजागर हुआ तो 16 अप्रैल 20 मई को कांगड़ा के जिलाधीश ने बकायदा आदेश निकाल कर ज्वालामुखी के तहसीलदार व बिचित्र सिंह को मंदिर अधिकारी का दायित्व सौंप दिया। लेकिन सवाल उठता है कि 4 मार्च और 16 अप्रैल के बीच ज्वालामुखी मंदिर के खजाने में की गई कई गड़बड़ियों के लिए आखिर दोषी कौन है क्या सरकार इसकी जांच करवाएगी और जांच होनी चाहिए ।