Punjab – सुख-दुख में समान रहने का लाभ कि हानि -ठाकुर दलीप सिंह*ਸੁੱਖ ਅਤੇ ਦੁੱਖ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਸਮਾਨ ਰਹਿਣ ਦੀ ਲਾਭ ਤੇ ਹਾਨੀ – ਠਾਕੁਰ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ


सुख-दुख में समान रहने का लाभ कि हानि -ठाकुर दलीप सिंह
जालंधर/SANGHOL-TIMES/13 सितम्बर,2025(जे.एस.सोढ़ी) विजय प्राप्ति जैसी कोई खुशी नहीं, पराजय जैसा कोई शोक नहीं। विजय प्राप्ति जैसी कोई संतुष्टि नहीं, पराजय जैसी कोई असंतुष्टि नहीं। जो सज्जन बड़े विचारवान बन जाते हैं वह सुख-दुख से कम प्रभावित होते हैं। जब कि साधारण मनुष्य को सुख-दुख अत्यंत प्रभावित करते हैं। कुछ महापुरुष उपदेश देते हैं कि विजय-पराजय से हमें बिल्कुल भी सुखी या दुखी नहीं होना चाहिए। गुरुवाणी में भी लिखा है “दुख सुख दोऊ सम करि जानै बुरा भला संसार” (म. १)। भारतीय संस्कृति के सभी धर्म ग्रंथों में भी “सुख-दुख में समान रहने” की अवस्था को सर्वोत्तम माना गया है। परंतु जीवन की सच्चाई यह है कि यदि हम विजय-पराजय से सुखी या दुखी नहीं होंगे फिर तो हम कोई विशेष उपलब्धि प्राप्त करने के लिए अत्यंत कठिन परिश्रम भी नहीं करेंगे। तथा विशेष प्रगति भी नहीं कर पाएंगे। अत्यंत उच्चतम प्राप्तियाँ तथा उच्चतम लक्ष्य प्राप्त करने हेतु अत्यंत प्रचंड, प्रबल, तीव्र भावना की आवश्यकता होती है। और प्रचंड, तीव्र भावना वाले मनुष्य को तीव्र सुख-दुख की अनुभूति भी होती है। एक साधारण सी बात है जिन्हें सुख-दुख कम अनुभव होते हैं उन में विजय-प्राप्ति की एवं लक्ष्य प्राप्ति की प्रचंड तीव्र भावनाएं भी कम होती हैं। क्योंकि यदि प्रचंड, तीव्र भावना होगी तभी भावना पूरी न हो पाने के कारण कोई व्यक्ति तीव्र दुख महसूस करेगा या उस की प्राप्ति से तीव्र सुख महसूस करेगा। ओलंपिक जैसे बड़े खेलों में विजय प्राप्त करने हेतु, खिलाड़ियों में विजय की तीव्र प्रचंड भावना की आवश्यकता होती है। उस विजय-प्राप्ति उपरांत खिलाड़ियों को अत्यंत प्रसन्नता व संतुष्टि होती है और विश्व में उन का नाम भी होता है। जिस से उन्हें पैसा,पदवी एवं शोभा प्राप्त हो कर, अनेक प्रकार के सुख मिलते हैं। जब कि खेल में पराजय के उपरांत उन्हें अत्यंत दुख होता है। भारत के प्राचीन ग्रंथों से तथा महापुरुषों से शिक्षा ले कर उन का अनुसरण करते हुए कुछ विदेशों में वहाँ के राष्ट्रीय खिलाड़ियों को योगासन, प्राणायाम की शिक्षा दी गई। साथ ही उन्हें सुख-दुख में समान रहने की शिक्षा भी दी गई। जो शिक्षा योग एवं प्राणायाम का एक अंग है। जिस के फलस्वरूप उन उच्च कोटी के राष्ट्रीय खिलाड़ियों में विजय/पराजय से होने वाले सुख-दुख के प्रभाव तो कम हो गए। परंतु सुख-दुख में समान रहने वाली ऐसी उत्तम वृति धारण करने के कारण उन राष्ट्रीय खिलाड़ियों में विजय-प्राप्ति की तीव्र भावना भी कम हो गई। जिस कारण प्रतियोगिता में उन के खेल-प्रदर्शन का स्तर भी नीचे आ गया। अर्थात जहाँ वह राष्ट्रीय खिलाड़ी पहले बहुत से पदक जीतते थे; जीतने की तीव्र भावना कम होने के कारण वह पदक नहीं जीत सके। इस तरह अत्यंत उच्चतम प्राप्तियां करने व उच्चतम लक्ष्य तक पहुंचने के लिए, सुख-दुख से भी प्रभावित होना स्वाभाविक है। सुख-दुख से प्रभावित होने वाला व्यक्ति ही प्रचंड भावना के कारण अपने महान लक्ष्य की प्राप्ति कर पाता है। सुख-दुख से कम प्रभावित होने वाले या बिल्कुल भी प्रभावित न होने वाले व्यक्ति के लिए उच्चतम लक्ष्य प्राप्त करना असंभव जैसा है।
——-00——-