कद्दावर नेता थे प्रकाश सिंह बादल – बादल के निधन के साथ एक युग का अंत हुआ है
Sanghol Times/27.04.2023 – देश के वयोवृद्ध नेता साम्प्रदायिक सद्भावना के पुरोधा और पंजाब व पंजाबियत के प्रतीक पंजाब की राजनीति विशेषतया अकाली राजनीति के केंद्र बिन्दू रहे तथा कद्दावर नेता स. प्रकाश सिंह बादल के निधन के साथ एक युग का अंत हुआ है। दशकों पंजाब की राजनीति का केंद्र बिन्दू रहे प्रकाश सिंह बादल ने केंद्र की राजनीति को भी एक समय में प्रभावित किया था। 1975 से 1995 तक के वर्ष पंजाब की राजनीति में ऐसे वर्ष थे जिनमें पंजाब ने आपात्काल से लेकर धर्मयुद्ध तथा ब्ल्यू-स्टार व आप्रेशन ब्लैक थण्डर से लेकर तत्कालीन मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या तक एक नहीं अनेक हिंसक व अप्रिय घटनाओं का सामना किया। खून से लथपथ पंजाब को राष्ट्र की मुख्यधारा में लाने के कार्य में स. प्रकाश सिंह बादल ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिस कारण अलगाववादियों के निशाने पर स. प्रकाश सिंह बादल जीवन के अंतिम सांस तक रहे।
स्व. प्रकाश सिंह बादल उन विरले राजनेताओं में थे, जिन्होंने शासन की कमान ‘राज नहीं, सेवा’ के मंत्र को मुख्य रख कर संभाली। उधर, सिख धर्म के प्रचार-प्रसार में बहुमूल्य योगदान के लिए प्रकाश सिंह बादल को पंथ रतन फख्र-ए-कौम के सम्मान से नवाजा गया। श्री अकाल तख्त साहिब ने दिसम्बर 2011 में प्रकाश सिंह बादल को इस सम्मान के साथ नवाजा था। प्रकाश सिंह बादल राजनीतिक के सबसे कद्दावर एवं सबसे बड़े नेता थे। प्रकाश सिंह बादल का जन्म 8 दिसम्बर, 1927 को पंजाब के बठिंडा के अबुलखुराना गांव में हुआ था। उन्होंने 1947 में अपने राजनीतिक सफर की शुरूआत गांव के सरपंच के रूप में की। प्रकाश सिंह बादल ने अपना पहला विधानसभा चुनाव साल 1957 में जीता था। 1970 में जब वह 43 साल के थे तब पंजाब के सबसे युवा मुख्यमंत्री बने। प्रकाश सिंह बादल ने कुल 5 बार पंजाब के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। उनके नाम एक अनोखा रिकॉर्ड भी रहा, जहां एक तरफ वह पंजाब के सबसे युवा मुख्यमंत्री बने तो वहीं जब साल 2017 में उन्होंने मुख्यमंत्री के रूप में 5वां कार्यकाल पूरा किया तो 90 साल की उम्र के वह सबसे बुजुर्ग मुख्यमंत्री भी रहे। वह शिरोमणि अकाली दल के प्रमुख रहे जो सिखों के प्रतिनिधित्व की बात करती है।
वहीं इस दल ने अक्सर हिंदुत्व के मुद्दे को लेकर आगे बढऩे वाली भाजपा का साथ दिया। आजादी के बाद के पंजाब में लगभग हर आंदोलन, निर्णय में उनकी भूमिका रही। कई आंदोलनों में भाग लेने के कारण उन्होंने 17 साल से अधिक जेल में बिताए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार उन्हें भारत का नेल्सन मंडेला कहा था। बादल अक्सर दूर-दराज के गांवों में पार्टी कार्यकर्ताओं और अन्य लोगों को उनके पहले नाम से बुलाकर चौंका देते थे। उन्होंने ‘संगत दर्शन’ को लोकप्रिय बनाया, जिसका कई अन्य राजनीतिक दलों ने अनुकरण करने की कोशिश की। गलतियों पर भी विनम्र रहने वाले बादल के बारे में माना जाता था कि वह अखबार में छपी किसी खबर को लेकर पुलिस और सचिवालय के अधिकारियों को सुबह फोन कर देते थे।
चाणक्य सूत्र में कहा गया है कि मनुष्य का भौतिक शरीर मरता है उसकी यश या कीर्ति रूपी देह नहीं अर्थात् उसकी कीर्ति बराबर बनी रहती है। स. प्रकाश सिंह बादल शारीरिक रूप आज अवश्य दिवंगत हैं लेकिन उनकी कीर्ति हमेशा बनी रहेगी। इतिहास की दृष्टि से दो प्रकार के लोग होते हैं एक इतिहास पढऩे वाले दूसरा इतिहास रचने वाले, प्रकाश सिंह बादल इतिहास रचने वाले वर्ग के थे। स. प्रकाश सिंह बादल के निधन के साथ पंजाब की राजनीति विशेषतया अकाली राजनीति में जो खालीपन आया है निकट भविष्य में उसे पूरा करना असम्भव-सा लग रहा है।
अकाली दल बादल के संरक्षक व सरप्रस्त स. प्रकाश सिंह बादल के निधन के साथ उनके बेटे सुखबीर बादल के लिए निजी तौर पर जो नुकसान हुआ है उसके अलावा राजनीतिक स्तर पर सुखबीर बादल को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। वाल्मीकि रामायण में कहा गया है:-‘काल का किसी के साथ भाईचारे का, मित्रता का बंधुता का सम्बन्ध नहीं है, उसको वश में करने का कोई उपाय नहीं है तथा उस पर किसी का पराक्रम नहीं चल सकता, क्योंकि काल किसी के वश में नहीं है।’ महाभारत में कहा गया है कि ‘वृद्धावस्था और मृत्यु के वश में पड़े हुए मनुष्य को औषध, मंत्र, होम और जप भी नहीं बचा पाते हैं।’ उपरोक्त कथनों को ध्यान में रखते हुए परमात्मा से यही प्रार्थना है कि दिवंगत आत्मा को शांति दें और बादल परिवार को दु:ख बर्दाश्त करने का बल दें।
– इरविन खन्ना